होमियो डायबा केअर
आखिर क्या है डायबिटीज...???
हमारे द्वारा खाए गये भोजन का पाचन होने पर लिवर उसे सरल शर्करा अर्थात ग्लूकोज में बदल देता है जिसे आसानी से शरीर की कोशिकाओं के द्वारा ग्रहण कर उर्जा में रूपांतरित किया जाता है। इस प्रक्रिया में बननेवाले ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करने का कार्य पेनक्रियाज द्वारा निर्मित इन्सुलिन हार्मोन के द्वारा किया जाता है, जो सामान्य अवस्था में भोजन पूर्व 70-100 mg/dl और भोजन के दो घंटे पश्चात 70-140mg/dl तक होना चाहिए किन्तु इन्सुलिन की अपर्याप्त मात्रा का निर्माण होने से लीवर द्वारा बने ग्लूकोज की मात्रा भी अनियंत्रित हो जाती है अर्थात रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इसी अवस्था को हम डायबिटीज या मधुमेह या शुगर होना कहते है।
शुगर के मरीजों का ब्लड लेवल 180mg/dl से अधिक होने पर अतिरिक्त शुगर को किडनी के द्वारा फिल्टर कर पेशाब में निकाल दिया जाता है इस अवस्था ग्लायकोसुरिया कहते है, जिसमें रोगी की पेशाब में ग्लूकोज की मात्रा जाने है । लम्बे समय तक यह स्थिति बने रहने पर किडनी की कार्यक्षमता बिगड़ने लगती है । रक्त में उपस्थित, शरीर के लिए आवश्यक तत्व भी शुगर के साथ फिल्टर कर किडनी के द्वारा बाहर निकाल दिये जाते है, जिसकी वजह से रोगी दिन-प्रतिदिन कमजोर होने लगता है, जिससे रोगी नित्य नये रोगों की चपेट में आने लगता है, जिनमें किडनी, हृदय, लीवर और आँखों के रोग जैसी गंभीर समस्याओं के साथ ही पैरों में जलन व झनझनाहट और दर्द, मुँह का सुखना, अति प्यास, कब्ज, स्मृतिनाश, अनिद्रा, शरीर में सूजन, त्वचा में खुजली के साथ दाने होना, ग्लूकोमा, पैरालिसीस जैसी तकलिफे भी शामिल है ।
डायबिटीज के इलाज के तौर पर एलोपैथिक चिकित्सा जगत में मुख्यतः दो प्रकार के हायपोग्लायसीमिक एजेंन्ट्स (खायी जाने वाली दवाए और इन्सुलिन के इंजेक्शन) का प्रयोग किया जाता है। जिनके साइड इफेक्ट्स के रूप में ही मधुमेह के रोगियों को कहीं न कहीं उक्त सभी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और हर नए लक्षण की नयी दवाई जुड़ती चली जाती है ।
यहाँ विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रकृति में शर्करा (शुगर) मुख्य रूप से तीन प्रकार की पायी जाती है - (1) ग्लूकोज (2) फ्रुक्टोज (3) सुक्रोज इनमें से ग्लूकोज से सभी परिचित है । यही वो शुगर है जिसकी रक्त में मात्रा अनियंत्रित होने पर मधुमेह या डायबिटीज रोग की स्थिति बनती है, जबकि दूसरे नम्बर की फ्रुक्टोज शुगर है, जो सिर्फ फलों व कन्द-मूलों में ही पायी जाती है और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह वही शुगर है जो रक्त में बढ़ी हुई ग्लूकोज की मात्रा को कम करने में सहायक होती है । साधारणतः हम ब्लड टेस्ट के दौरान ब्लड शुगर को ही टेस्ट करते है ना कि फ्रुक्टोज को ।
उक्त सिद्धांत के अनुसार यदि मधुमेह या डायबिटीज के रोगी #होमियो डायबा #केअर के साथ फ्रुक्टोज शुगर अर्थात फलों को अपनी खुराक में (आगे बतायी गयी विधि के अनुसार) सम्मिलित करें तो न सिर्फ रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कंट्रोल होगी बल्कि डायबिटीज से सम्बंधित सारे रोगों के लक्षण भी धीरे-धीरे खत्म हो जाऐंगे ।
फल खाने और पानी पीने कि विधिः
1) सबसे पहले रोगी अपना वजन करें और अपने वजन की संख्या के आगे एक शुन्य लगा दे (10 गुना कर दे)। इस प्रकार प्राप्त संख्या के बराबर ग्राम के कोई 4 प्रकार के फल सुबह से दोपहर 12 बजे के बीच खाए एवं उपरोक्त वजन का आधा हिस्सा सलाद, दोपहर के भोजन (लंच) के पहले व आधा हिस्सा रात्री के भोजन (डिनर) से पहले चबा-चबाकर खाये, फिर आवश्कतानुसार भोजन करें।
विशेष नोटः- चर्म रोग से परेशान लोग व ठण्डी तासीर वाले, फलों में मोसंबी, संतरा व पाइनएप्पल न लें ।
2) शरीर के वजन के हर 15 kg वजन पर 1 लीटर पानी अर्थात 60 kg वाले व्यक्ति को 60/15= 4 लीटर पानी नापकर सुबह उठने से लेकर रात सोने तक पीना चाहिए ।
उदाहरण के लिएः-
(i) जैसे किसी का वजन 60 kg हो तो एक शून्य बढ़ाने (10 गुना करने) पर यह संख्या 600 हो जाएगा, अतः कोई भी 4 प्रकार के मिलाकर (छिलका-गुठली निकालकर) 600 ग्राम वजन कर लें।
(ii) सलाद में खीरा, ककड़ी, गाजर, मूली, टमाटर, प्याज, पत्ता गोभी, पालक, बीट आदि का उपरोक्तानुसार 600 ग्राम का आधा वजन अर्थात 300 ग्राम सुबह और 300 ग्राम शाम को लें।
डायबिटीज या मधुमेह से सम्बंधित इन्ही तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हरि ॐ मेन्युफेक्चरर्स के होमियोपैथिक औषधि निर्माण संस्थान ने गहन परीक्षणों के बाद #होमियो डायबा केअर का निर्माण किया है। जिसके सेवन से मधुमेह के नये और पुराने रोगियों में आशातीत लाभ मिले है। उनकी शुगर की दवाइयों की मात्रा में कमी के साथ ही साथ उपर वर्णित विभिन्न लक्षणों में भी आश्चर्यजनक परिणाम मिले है।
सेवन विधिः 1-1 गोली दिन में तीन बार चुसकर लें या चिकित्सक की सलाह अनुसार ।
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विशेष नोटः- होमियो डायबा केअर के सेवन काल में ब्लड लेवल तेजी से घटना प्रारंभ हो जाता है अतः उपयोगकर्ताओं से प्रार्थना है कि वे ब्लड शुगर लेवल (FBS/PPBS) की जाँच सप्ताह में एक या दो बार अवश्य करवाए तथा आशातित परिणाम मिलने पर अपनी नियमित अंग्रेजी दवाईयों की मात्रा (अपने चिकित्सक के परामर्श अनुसार) कम करते जाए अन्यथा हायपोग्लायसीमिया (ब्लड शुगर लेवल 70 mg/dl से कम होना) की स्थिति होने की संभावना बनी रहती है ।